नज़ाकत से मोहब्बत-प्यार करना, याद आता है,
छुपे इज़हार पर वो आह भरना, याद आता है..
मचा के शोर सच्चे प्यार का, फिर साथ बस दो दिन,
झुका के वो पलक इक़रार करना, याद आता है..
सरकता था कहीं पल्लू तो जां सबकी निकलती थी,
नुमाइश अब तो लगती है, तरसना याद आता है..
पड़े मजनू को जो पत्थर, तो लैला भी चहकती है,
वो नीचे चोट, ऊपर जाँ निकलना याद आता है..
जो हटती थी नहीं चेहरे से, टिकती है बदन पे बस,
नज़र नज़रों से मिलके दिन गुज़रना, याद आता है..
कभी लुटते थे पर्दे में छुपी आवाज़, बस सुनकर,
वो दिल को देख कर दिल का धड़कना, याद आता है..
इधर इज़्ज़त है बेची, तो उधर ग़ैरत गंवाई है,
है जिनसे इश्क़, उनको 'आप' कहना, याद आता है..
यादों के झरोखे.
ReplyDeleteसारे शेर एक से बढ़कर एक है। आभार।
ReplyDeleteसरकता था कहीं पल्लू तो जां सबकी निकलती थी,
ReplyDeleteनुमाइश अब तो लगती है, तरसना याद आता है..
वाह-वाह , बहुत खूब जनाब ।
waaaaaaaaaah wahhhhh bahoot hi khoob likha hai aapne daad kabool karen
ReplyDeleteSabhi ka bahut bahut shukriya..
ReplyDeletebhaiiii..jhakas
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