उसी को देख जीता हूँ, मैं जिसपे यार मरता हूँ,
जिसे नफ़रत है मुझसे, मैं उसी से प्यार करता हूँ..
नज़र जब भी वो आती है, तभी मदहोश होता हूँ,
जो ना देखूं तो बेचैनी, जो देखूं होश खोता हूँ,
कुचल जाती है वो हर बार, बेदर्दी से दिल मेरा,
मगर उसकी ही राहों में, पड़ा हर रोज़ होता हूँ..
मैं जिससे चोट खाता हूँ, वही हर बार करता हूँ,
जिसे नफ़रत है मुझसे, मैं उसी से प्यार करता हूँ..
ना दिल पे है रहा काबू, ना ख़ुदको रोक पाता हूँ,
तबाह होता हूँ, मालुम है, मगर ना टोक पाता हूँ,
निगाह फेरी जो उसने, वो भुला बैठी मेरी हस्ती,
मैं होके राख़ भी, इक याद तक ना झोंक पाता हूँ..
वही है तीर, फिर से, दिलके आरम-पार करता हूँ,
जिसे नफ़रत है मुझसे, मैं उसी से प्यार करता हूँ..
उसी को देखकर-सुनकर, मचलता हूं बहलता हूँ,
जहाँ उम्मीद हो उसकी, उसी रस्ते पे चलता हूँ,
मेरे गर ज़ख्म दिख जाएं, खुशी उसकी नहीं छुपती,
वो मुझको देख मुस्काए, लिए ख़ंजर टहलता हूँ..
उसे देकर ख़ुशी, जीना मैं ख़ुद दुश्वार करता हूँ,
जिसे नफ़रत है मुझसे, मैं उसी से प्यार करता हूँ..
मझे मालूम, वो भी है समझती, जो ना कहता हूँ,
वो ख़ुद मुझको उभारेगी, लिये उम्मीद बहता हूँ,
मेरा गर नाम सुन ले साथ अपने, वो उबलती है,
जवाबों को सवालों में छुपाए, मैं भी सहता हूँ..
कोई पूछे अगर मुझसे, भले इनकार करता हूँ,
जिसे नफ़रत है मुझसे, मैं उसी से प्यार करता हूँ..!!
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