इश्क़ मे जीत मिल जाती, तो मैं हर हार सह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..
सुनी ना एक भी मेरी, सदा दिल ने जो दीं हर दम,
मैं हंसता था हंसाने को, ना वो समझे, मुझे है ग़म,
वो होते ख़ुश, तो ख़ुश होता, वो रोते थे, तो रोता था,
ज़ख़म मेरे जो दुख़ते थे, ना होती थी ये आँखें नम..
यकीं करते जो मेरे इश्क़ पे, इनकार सह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..
सभी तो देख कहते थे, के मैं बर्बाद होता हूं,
अकेला मैं भरम में था, के मैं आबाद होता हूं,
मैं उनको मांग, अपनी हर दुआ में, सांस लेता था,
मैं ख़ुश हो सोचता था, उनकी मैं फ़रियाद होता हूं..
किनारे राह गर तकते, मैं हर इक बार बह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..
के सारी कोशिशें कर ली, मुझे दिल में पनाह दें वो,
भले थोड़ी सही, कोने में ही, मुझको जगाह दें वो,
सभी इल्ज़ाम उनके, हूं मैं राज़ी नाम लेने को,
बुलाएं तो मुझे इक बार, चाहे बस गुनाह दें वो..
जिसे वो चूमते, उस फूल का बन ख़ार रह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..
समझ ना पाया उनकी बेरुख़ी को, ज़िंदगी भर मैं,
वो थे गर पाक़, उनकी आँख में, था गंदगी भर मैं,
मुझे क़ाफ़िर समझते वो, समझता मैं ख़ुदा उनको,
उन्ही के सामने झुकता, उन्ही की बंदगी पर मैं..
ज़रा इज़हार तो करते, उन्हे बेज़ार सह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..
जो टूटा है, उन्ही की बद्दुआ का है असर सारा,
धड़कता है ज़रा थम के, धड़कता है मगर मारा,
उन्ही के साथ की चाहत में ही, सब ज़ख़्म खाए हैं,
उन्ही को चाहता फिर भी, उन्ही का साथ है प्यारा..
वो गर अपना बना लेते, मैं हर इक वार सह जाता,
तरीक़ा कोई तो होता, है कितना प्यार कह पाता..!!
* ख़ार - काँटा ( Thorn )
* बेज़ार - नाराज़ / नाख़ुश ( Displeased/ Angry)