Friday, May 4, 2012

दो बातें..


तुझे पाने की खुशी भी कोई भरम ही थी,
तेरे जाने का ग़म भी ग़म नहीं है सच्चा सा,
तुझे तड़पाने की भी कोई आरज़ू है नहीं,
के मैने कुछ नहीं खोया, हैं खोया तूने मुझे..
जो खटकती हैं दिल को बार बार रह रह कर,
है बात बस दो, एक बीत गई, इक होनी..
इक, काबिल नहीं तू मेरे, देर से जाना,
तुझे वो सब दिया, थी जिसकी तू हक़दार नहीं..
दुजा, ग़र मुझसे कोई असली मोहब्बत कर ले,
ये एहतियात मेरी दुख न उसको पहुंचाए,
जो उसका हक़ हो इश्क़ में उसे मिले पूरा,
मेरी चाहत में कहीं कुछ कमी न रह जाए,
मेरी चाहत में कहीं कुछ कमी न रह जाए..

7 comments:

  1. वाह.........वाह....................

    बहुत खूब................................................

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  2. प्रभावशाली अभिव्यक्ति.....

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  3. मेरी चाहत में कहीं कुछ कमी न रह जाये.... बेहतरीन रचना

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  4. वाह ... क्या आरज़ू है ...
    चाहत में किसी कों कमी न मिले ...

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  5. वाह ...बेहतरीन भाव संयोजन ।

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  6. कोमल भाव से रची सुंदर अभिव्यक्ती.....

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