सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
घड़े मिट्टी के नहीं जल के कभी ख़ाक हुए,
जला सोना जितना, नूर उतने पाक़ हुए,
वहीं झुलसा, जहाँ सोचा था निखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
भिखारी राजा बनके बैठे, यहाँ झूठों से,
सभी हैं कामयाब, पाप की करतूतों से,
ज़रा सा और दिखा सच, तो बिखर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
जहाँ मय्यत में दर्द झूठ है, आहें नकली,
मदद् में मतलब है, सबकी निगाहें नकली,
उसूल लेके असली, कैसे संवर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
मरोड़े धर्म जैसे पंडितो को ठीक लगा,
मज़हब को मौलवी ने मोड़ा, जैसे ठीक लगा,
मैं लेके वेद, ये क़ुरान, किधर जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..
सफ़र है ज़िंदगी का, मैं भी गुज़र जाऊंगा,
इसी उम्मीद पे ज़िंदा हूं, के मर जाऊंगा..