Friday, August 26, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#19



सजाओ महफिलें मय की, तो दिल की बात कहूं,
पिलाओ जाम दो ज़रा, तो दिल की बात कहूं..

अभी तो होश में हूं, दिल भला कैसे खोलूं,
ज़रा मय का असर बढ़े, तो दिल की बात कहूं..

छुपे से कुछ अरमां, और दुबकती आरज़ू हैं,
दबे जज़्बात जगाओ, तो दिल की बात कहूं..

ना सर से, और ना कंधे से बनेंगी बातें,
जो दिल पे हाथ रखो तुम, तो दिल की बात कहूं..

बिना मय के बड़ी घबराहटें सी हैं 'घायल',
ज़रा डर सा चला जाए, तो दिल की बात कहूं..


2 comments:

  1. wah wah..lagta hai to tere sath b mehfil jamani hi padegi...

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  2. dil ki baat to bina pilaye hi kahee jaa saktee hai khair aandaje baya achchaa hai

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