Wednesday, May 1, 2013

आज फिर आँख भर गई होगी..


आज फिर आँख भर गई होगी,
उसको मेरी ख़बर गई होगी..

मेरी यांदों की धूल में लिपटी,
हाय कैसे वो घर गई होगी..

रात ख़्वाबों में देख कर मुझको,
सोते-सोते संवर गई होगी..

बारहा बेहया सवालों से,
जीते जी फिर से मर गई होगी..

इक तरफ़ प्यार इक तरफ़ रस्में,
नंगे पांवों गुज़र गई होगी..

अश्क़ पीकर, नज़र झुका कर के,
सबके दिल में उतर गई होगी..

चाय की प्यालियां संभाले, ख़ुद,
होके टुकड़े बिखर गई होगी..

कहते-कहते कबूल है क़ाज़ी,
रहते-रहते मुक़र गई होगी..

15 comments:

  1. बहुत ही सुंदर गज़ल, वाह !!!!!!!!!!!!

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  2. वाह बेहतरीन गजल
    धूल से लिपटी यादों के सात घर जाना
    प्यार का महीन अहसास
    बधाई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति



    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  3. दर्द और सिर्फ दर्द .....!!!!

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  4. कितना अनिश्चित सब-कुछ!

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  5. Gr8 lines.
    Paritosh
    www.dr3vedi.blogspot.in

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  6. द्वन्द और दर्द का समन्वय!

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  7. सुंदर...मौज्जाँ ही मौज्जाँ!!

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  8. Haan aaj bhi jab tera zikr aata hai to dil bhar jaata hai . . Aisa lagta hai jaise kal ki hi to baat hai

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  9. It was very useful for me. Keep sharing such ideas in the future as well. This was actually what I was looking for, and I am glad to came here! Thanks for sharing the such information with us.

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