Monday, August 13, 2012

फिर चाँद है रुआंसा, बर्सात हो रही है..


फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है,
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है,
मदमस्त सी हवा है, लम्हे उड़ा रही है,
दिल की ज़मीं पे देखो, जज़्बात बो रही है..

इक हाथ में हैं यादें, इक हाथ में कलम है,
अल्फ़ाज़ बह रहे हैं, कुछ आँख फिर से नम है..
किसको परे छिटक दूं, किसको ग़ज़ल बना लूं,
इस कशमकश से बेहतर, भी कशमकश नहीं है..
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है..

काले सियाह बादल, कहते हैं मुझसे अकसर,
दिल तोड़ के गया जो, बेदर्द है बड़ा वो..
नादान हैं बेचारे, कैसे इन्हे बताऊं,
वो जख़्म के बहाने, कुछ नज़्म दे गया है..
फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है..

ना रात रूठ जाए, इक आँख है जगी सी,
ना हो सहर भी रुस्वा, इक आँख सो रही है..
मेरा गला भरा सा, है चाँदनी भी गुमसुम,
खामोशियां हैं हर सू, पर बात हो रही है..
मदमस्त सी हवा है, जज़्बात बो रही है..

उलझी हुई हैं सांसे, धड़कन उलझ रही है,
इन उलझनो से मेरी, दुनियाँ सुलझ रही है..
हैं नींद भी ज़रूरी, पर बात ये भी सच है,
इस रतजगे से कुछ तो, औकात हो रही है..
फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है..

फिर शाम ढल चुकी है, फिर रात हो रही है,
फिर चाँद है रुआंसा, बरसात हो रही है,
मदमस्त सी हवा है, लम्हे उड़ा रही है,
दिल की ज़मीं पे देखो, जज़्बात बो रही है..

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर....................

    अनु

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  2. बहुत सुन्दर.. भावनाओं से भरा हुआ गीत.. :)

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  3. सुंदर रचना... बरसात हो रही हैं सुधार लीजिये

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुनील जी... सुधार कर दिया है.. :)

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  4. भावनाओं से भारी लाजबाब रचना,,,,आदित्य जी, बधाई,,,,,

    स्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,
    RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

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  5. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  6. वाह ... बहुत खूब ।

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  7. this is one of the best i have ever read! i am taking a print out for my wall!
    great work!

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