Wednesday, March 7, 2012

समझ बैठे..


हमेशा कम उसे पाया, जिसे ज़्यादा समझ बैठे,
मुकम्मल वो मिला है बस, जिसे आधा समझ बैठे..

चमकती चीज़ जो देखी, समझ बैठे उसे सोना,
चमक उसमें मिली असली, जिसे सादा समझ बैठे..

जिसे सूरप-नखा समझे थे हम, निकली वही सीता,
वही इक पूतना थी, हम जिसे राधा समझ बैठे..

हो फ़ितरत या-वो नीयत हो, उमर भर एक रहती है,
हमारा बचपना ही था, उसे दादा समझ बैठे..

वही निकला वज़ीर-ए-आज़म-ए-तक़दीर, इक मोहरा,
जिसे 'घायल', बिसात-ए-ज़िंद का प्यादा समझ बैठे..

Thursday, March 1, 2012

ज़िंदगी क्या है..


मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,
तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..

ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,
ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,
तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..

किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,
सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,
तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..

किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,
किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके मुस्काना,
हंसी अपनी या तड़प ग़ैर की, खुशी क्या है..

कोई दरिया लिए दिल में है, मग़र हंसता है,
कोई देता है दहाड़ें, तो होंठ कसता है,
निरा बाज़ार नकल्लों का है, असली क्या है..

सिवा इंसान, मारे उतना जितना खा पाए,
यही बस एक, जितना खाए, भूख बढ़ जाए,
ना जाने कौन जानवर है, आदमी क्या है..

कोई नख़रे में हो नाराज़, और ना बात करे,
कोई क़ाबिल, किसी मजबूर का ना साथ करे,
है बेबसी या गुनाह, या है बेरुखी, क्या है..

जिसे नदिया मिली बहती, वो चाहे दरिया को,
जिसे इक बूंद नहीं, ताके वो गगरिया को,
है दुआ कौन खरी, सच्ची तिश्नगी क्या है..

किसी को दिल में बसा लेना, उम्र भर के लिए,
किसी नए का साथ, हर नए सफ़र के लिए,
है क्या बला ये इश्क़, और-ये दिल्लगी क्या है..

मैं तुझको कब तलक गिनाऊं, के कमी क्या है,
तू मुझको अब तो ये बता, के ज़िंदगी क्या है..


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एक मक़ता इस नज़्म से अलग, पर इसी क़ाफ़िए पर:

"कोई शायर है, या पागल है, दिवाना है कोई,
ये जिसका नाम है 'घायल', ये वाक़ई क्या है.."
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