ये महफ़िलें मेरे जनाज़े की, हैं कोशिशें उन्हे बुलाने की,
जो आए ठीक से नहीं अब तक, जिन्हे लगी हुई है जाने की..
फ़िज़ूल में ही मैं परेशां था, ये कोई बात थी छुपाने की,
मुझे लगी है याद करने की, उन्हे लगी है याद आने की..
अजीब रस्म हैं मुहब्बत की, अजीब इश्क के फ़साने है,
जो आग दिल में यां लगाता है, उसी को बस ख़बर बुझाने की..
वो याद रात भर जगाती थी, तो ठान ली उसे मिटा दूंगा,
ग़ुजर नहीं रहें हैं अब दिन भी, वाह जद्दो-जहद भुलाने की..
हुए हैं जब से मेरे दिल के सौ, बड़े ही खुश हैं साथ में टुकड़े,
था एक दिल तो दिल अकेला था, है अब तो मौज हर दिवाने की..
नहीं रही है दोस्ती माना, ये दुश्मनी भी इक मरासिम है,
बचा उसे, बचा है जो बाक़ी, ग़ुज़र गई घड़ी मनाने की..
निकाल दे जो दर्द है दिल में, मैं सुन रहा हूं ग़ौर से तेरी,
बुरा ना मान मेरे चेहरे का, इसे तो लत है मुस्कुराने की..
बड़े बड़े ये महल आलीशां, ये सब के सब तुम्हे मुबारक हो,
जो दिल में घर बना के रहते हैं, वो सोचते नहीं ठिकाने की..
जो है मेरा मुझे मिलेगा वो, जो खो गया वो था ही कब मेरा,
कि आदमी की ही तरह किस्मत, लिखी हुई है दाने-दाने की..
ज़बां पे जो कभी नहीं आए, वो लफ़्ज़ यूं गिरे हैं काग़ज़ पर,
कभी मैं जिन को ले के रोता था, वो बात हो गईं हैं गाने की..
ख़ुदा मैं शुक्रिया जताने को, उठाऊं हाथ कौन सा कह दे,
इसे है आरज़ू लुटाने की, इसे हैं हसरतें गंवांने की..
भला बुरा किसे पता 'घायल', ये आदमी नहीं ख़ुदा कोई,
चलो करें जो दिल कहे अपना, बहुत हुई फ़िकर ज़माने की..