Friday, August 26, 2011

शुक्र है..शुक्रवार है..#19



सजाओ महफिलें मय की, तो दिल की बात कहूं,
पिलाओ जाम दो ज़रा, तो दिल की बात कहूं..

अभी तो होश में हूं, दिल भला कैसे खोलूं,
ज़रा मय का असर बढ़े, तो दिल की बात कहूं..

छुपे से कुछ अरमां, और दुबकती आरज़ू हैं,
दबे जज़्बात जगाओ, तो दिल की बात कहूं..

ना सर से, और ना कंधे से बनेंगी बातें,
जो दिल पे हाथ रखो तुम, तो दिल की बात कहूं..

बिना मय के बड़ी घबराहटें सी हैं 'घायल',
ज़रा डर सा चला जाए, तो दिल की बात कहूं..


Thursday, August 4, 2011

माँ का न व्यापार करो




बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

जिसकी मिट्टी के आंचल में, खेल कूद कर बड़े हुए,
बने नपुंसक, उसके सीने पर बिन लज्जा खड़े हुए,
भारत माँ के हर शत्रू का, आगे बढ़ संहार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

अब कपूत भी, हैं सपूत का, भेस-ही धारण किये हुए,
ऋषि रूप में छलते दानव, रक्त पिपासा लिए हुए,
जग समक्ष तुम सत्य दिखाकर, इन दुष्टों पर वार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

दो सौ वर्षों के घावों को सह कर भी, जो डटी रही,
टुकड़े-टुकड़े कर डाले, पर टुकड़ों में भी सटी रही,
उस चिड़िया के स्वर्ण-पंख, लौटाने की हुंकार भरो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

वचन अधूरा न छोड़ो, तुम कर्म अधूरा न छोड़ो,
बन सुपुत्र कर्तव्य निभाओ,  धर्म अधूरा न छोड़ो,
नव-निर्माण करो भारत का, हर बाधा को पार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..

बेच रहे जो भारत को, उनकी न जय-जय कार करो,
पुत्र हो जिस भूमी के तुम, उस माँ का न व्यापार करो..!!