Sunday, April 28, 2013

ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती..


ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती,
रूह आराम क्यूं नहीं पाती,
है कोई मर्ज़ या कयामत है,
दवा कोई दुआ नहीं भाती..

बड़ी मुश्क़िल से बड़ी महनत से,
हुई नफ़रत हमें मुहब्बत से,
ये बला कौन आ पड़ी है गले,
नींद अब के ये क्यूं नहीं आती..

कल तलक तो सकून देती थी,
यही रग-रग को ख़ून देती थी,
है ख़फ़ा या है बेवफ़ा मुझसे,
आज मय क्यूं असर नहीं लाती..

न कोई आरज़ू अधूरी है,
न कोई पास है न दूरी है,
ख़्वाहिशें कब की मार दीं सारी,
आस-ए-दिल क्यूं ज़हर नहीं खाती..

ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती,
दवा कोई दुआ नहीं भाती,
है कोई मर्ज़ या कयामत है,
रूह आराम क्यूं नहीं पाती..